Sunday, January 24, 2010
Thursday, January 21, 2010
Deemed to University
डीम्ड यूनिवर्सिटी का प्राविधान यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यू.जी.सी)अधिनियम १९५६ के अंतर्गत बेहतरीन काम करने वाले कोल्लेजेस को डीम्ड यूनिवेर्सिटी का दर्जा देने का प्राविधान है. जिन्हें ये सोयात्ता मिली है . उन्हें पेपर करना,परीक्षा करना तथा डिग्री देने का अधिकार है.सोयेत्ता देने के लिए यू.जी.सी. की टीम का गठन किया जाता है .जब कॉलेज सरे मानक पूरे कर लेता है तब डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा मिलता है. और किसी भी यूनिवर्सिटी से सम्बधता की आवोश्यकता नहीं होती है.कुछ समय के बाद केंद्र सर्कार ने यूनिवर्सिटी और डीम्ड यूनिवर्सिटी में भ्रम पैदा होने से इन्हें डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी लिखने को कहा गया .देश के ४४ संस्थानों की मान्यता समाप्त कर दी गयी जिसमे १६ डीम्ड यूनिवर्सिटी तमिलनाडु से और बाकि १२ प्रदेशो से है.हर साल अ.इ.सी.टी.और यू.जी.सी. से संबध कराया जाता है इसकी कार्यप्रणाली अत्यंत जटिल है.इसे ठीक करने की बजाय इसे एक लाइन का आदेश पारित कर समाप्त करना चाहती है.इतने चैनल्स पार करने के बाद संस्था की शिक्षा एक दम से घटिया क्यों हो गयी?संस्थाओ के निजीकरण से वेओसयेकरण होने के कारन टीचर्स का शोषण बढ़ा है .साथ ही सिक्षा का इसतर गिरा है.मान्यता देने से पूर्व छानबीन करना चाहिए प्रतिबन्ध लगाना समस्या का हल नहीं है.जो संस्थाए धन उगाही कर रही है ,शोषण कर रही है एवं छात्रों के साथ खिलवार कर रही है उनके विरुद्ध ज़रूर कार्यवाही होनी चाहिए . अगर सर्कार का रविया ऐसा ही रहा है तो छात्र हमेशा दिग्भ्रमित रहेगा और सभी का डीम्ड यूनिवर्सिटी से भरोसा उठ जायेगा . उच्च सिक्षा के प्रोत्साहन के लिए जो यू.जी.सी.ने डीम्ड का प्राविधान किया है उसे समाप्त कर देना चाहिए .उच्च सिक्षा के फिएल्ड में कोई विकासात्मक कार्य नहीं हो रहा है.जटिल नियम बनाने एवं एक तरफ़ा कार्यवाही से समस्या बढती जायगी .हलाकि सर्कार ने कहा है की ४४ डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा समाप्त कर उनसे संबधित यूनिवर्सिटी से संबध कर दिया जायेगा.(Dilshad Ahmad Ansari)
Thursday, January 14, 2010
आर.टी.आई.के दायरे में चीफ जस्टिस का पद एक अहम् फैसला
प्रधान नयधीश का पद सूचना के अधिकार के दाएरे में आता है । इसके अंतर्गत नयाधीशो की सम्पति का विवरण हासिल होना चाहिए । ऐसा दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है। इसके पहले प्रधान नयधीश के.जी.बलाक्रिसनन ने इसका विरोध किया था। एक अहम् फैसले में तीन जजों की बेंच जिसमे मुख्या न्याधीश ऐ.पी.शाह ,न्यामुर्ती विक्रमजीत एवं न्यामुर्ती मुरलीधर की पीठ ने ८८ पन्नो में अपना फैसला सुनते हुए कहा क़ि नेएक स्वतंत्रता किसी न्याधीश का विशेषाधिकार नहीं बल्कि उसे सौपी गयी जिम्मेदारी है। इस विषय में मेरा मानना है क़ि जितनी बड़ी जिम्मेदारी होती है उतनी अधिक उसकी जिम्मेदारी होती है। चिंताजनक बात यह है क़ि जादा से जादा अधिकार चाहते है मगर जवाबदेही से बचना चहते है । इसका आशय यह हुआ क़ि बनाये गए कानून के प्रति इमानदार नहीं है । इस फैसले से जरूर क्रांति आयेगी। (डॉ.दिलशाद अहमद अंसारी)
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